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Showing posts from March, 2012

रात

चर्च का घंटाघर जब चीखता है सन्नाटे में, स्ट्रीट लाइट  की रोशनी जब सूरज बन के चमकती है  खून के भूखे मछ्छर रोशनी को पीने वहां मंडराते है , छाँव देने वाला बरगद जब राक्षस बन जाता है , वीरान सडक पर तेज़् सांसो की भागमभाग रहती है , और धीरे धीरे काला घना अँधेरा सर चड जाता है , उसे हम बड़ी आसानी से सिर्फ  एक रात कहते है .