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Showing posts from January, 2013

में मर चूका हू

मुझे लगता है मेरे आस पास सब कुछ मर गया है सूरज की रौशनी से ले के मेह्बुब की  आँखों का नूर सब कुछ बेजान सा लगा रहा है पहले  जो संगीत हुआ करता था, एसी चिडियों की आवाझ से अब डर सा लगा रहता है, मुझे समज नहीं आ रहा था अब तक की क्या हो रहा लेकिन अब जाना है की दरसल में मर चूका हू. और फिर भी एक सवाल है जो  मुझे छोड़ नहीं रहा है में आखिर था  कोन ? में रचेयता था  , या में रचना था  ? में रौशनी था , या में अंधकार था  ? मेह्बुक की पुकार था , या मजलूम की चीख था  ? और मेने ऐसे किया तो क्या था के मरने के बाद भी मुझे चेन नहीं है . हमेशा जुंड में चला , जो समूह ने कहा वही मेरी आवाज थी , मेने सिर्फ अपनी परवाह की तो क्या गलत किया ? सूखे पेड से ले कर , जहरीले समन्दर तक में ये सब पूछ आया कसी ने मुझे कुछ नहीं कहा. शायद वो भी मेरे प्रतीक बन गए थे , अब वो भी सिर्फ अपनी ही परवाह कर रहे थे , पर एक लाश को मेरे पे रहेम आया. मेरे हर सवाल का जवाब देने वो लाश भगवान बन के आई थी बड़ी बेरुखी से बतलाया उसने में इन्सान था . में इन्सान था ? में इन्सान था ? लेकिन में तो