वो आसमा भी क्या ,वो जमीं भी क्या जमीन है
जिस्मो की
कब्रमें जहा बस रूह जमी है ..वो आसमाँ
आग में जली हो या ,
मिट्टी में दफ़न हो
ये जिदगी भी
क्या है , थोड़ी हड्डी है थोड़ी चमड़ी ....वो आसमाँ भी
चांदी की उन रातो
में अब तपिश बहोत रहती है
तारे भी अब छुप
गए है सुरज की करवट में .......वो आसमाँ भी
गर्म सडको पे ठंडी सांसे जमी रहती है
अब तो ख्वाइशेंभी
पतरे के डिब्बोंमें कद रहती है .... वो आसमाँ भी
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