जब यादो की खिड़की को खोला मेने
एक हसी जोर से आ के चहरे पे लगी थी,
कुछ देर तो सहें सा गया था में , पर जब वो हसी,
बारिश की बूंद बनके गिरी चहरे पर तो देखा मेने के वहा ,
माँ की गुदगुदी और बाबूजी का तेज़ जुला था
दादी की दिलचस्प कहानिया और दादा का एक ब्लेक एंड वाइट फोटो था,
छोटी छोटी गलियों में बड़ा एक बचपन था
यारो के संग रंगीन हर लमहा था.
पहली सिगारेट जलने की शुर्विरता थी
और उसे दोस्तों को सिखाने के चक्कर में पड़ी चपेट थी
अनजान शहर में किताबो का एक ढेर था
और प्रिन्सिपाल के केबिन की ठंडी केबिन के पीछे
मेरे महबूब के अंचल की गर्मी थी.
में तो डरा रहता था अपने भूतकाल से
पर जब मेने यादो की खिड़की को खोला
तो एक हसी जोर से आके चहरे पे लगी थी
यादो की खिड़की by Ankit Gor is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
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