तिनके के टूटते ही शाख रो सी पड़ी ..
दरिया में तेरती एक बूंद थम सी गई..
तेरी महोब्बत ,
खामोश माहोल में फिर क्यों है खड़ी
ज़िन्दगी मायूस सी पर रो न सकी तेरी महोब्बत
अजगर की लिप्टन सी थी वो मुलाकाते
हर बार मेरी एक साँस दफना कर बढ़ चली, तेरी महोब्बत
अमृत की तलाश में चला था में पर मुजको मिला है वो
मंथन से निकला था जो, और शंकर ने पिया था जो,
तुने उगला है आज जाम मेरा बना आज वो तेरी महोब्बत
तेरी महोब्बत , by Ankit Gor is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Based on a work at ankitisam.blogspot.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at akki.gor77@gmail.com.
Comments
Post a Comment